एक युवक कविताएं लिखता था, लेकिन उसके इस गुण का कोई मूल्य नहीं समझता था। घर वाले भी उसे ताना मारते रहते कि तुम किसी काम के नहीं, बस कागज काले करते रहते हो। उसके अंदर हीन-भावना घर कर गई। उसने एक जौहरी मित्र को अपनी यह व्यथा बताई। जौहरी ने उसे एक पत्थर देते हुए कहा- जरा मेरा एक काम कर दो। यह एक कीमती पत्थर है। कई तरह के लोगों से इसकी कीमत का पता लगाओ, बस इसे बेचना मत। युवक पत्थर लेकर चला। वह पहले एक कबाड़ी वाले के पास गया। कबाड़ी वाला बोला- पांच रुपये में मुझे यह पत्थर दे दो। फिर वह सब्जी वाले के पास गया। उसने कहा- तुम एक किलो आलू के बदले यह पत्थर दे दो, इसे मैं बाट की तरह इस्तेमाल कर लूंगा। युवक मूर्तिकार के पास गया। मूर्तिकार ने कहा- इस पत्थर से मैं मूर्ति बना सकता हूं, तुम यह मुझे एक हजार में दे दो। आखिरकार युवक वह पत्थर लेकर रत्नों के विशेषज्ञ के पास गया। उसने पत्थर को परखकर बताया - यह पत्थर बेशकीमती हीरा है, जिसे तराशा नहीं गया। करोड़ों रुपये भी इसके लिए कम होंगे। युवक जब तक अपने जौहरी मित्र के पास आया, तब तक उसके अंदर से हीनभावना गायब हो चुकी थी और उसे एक संदेश मिल चुका था।
कथा-मर्म : हमारा जीवन बेशकीमती है, बस उसे विशेषज्ञता के साथ परखकर उचित जगह पर उपयोग करने की आवश्यकता है।
https://www.facebook.com/manju.pandey.98?ref=stream&hc_location=stream
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